वैदिक सभ्यता
वैदिक सभ्यता को दो स्पष्ट जो काल खंडों में विभाजित किया जाता है। 1500 ई. पूर्व से 1000 ई. पूर्व तक के कालखंड तो ऋग्वैदिक काल और 1000 ई. पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक के कालखंड को उत्तर वैदिक काल के नाम से जाना जाता है।
आर्य सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
ईरान की धार्मिक पुस्तक 'जेन्द अवेस्ता' तथा बोगज़ कोई अभिलेख से मिले संकेत के अनुसार आर्य संभवत: ईरान के रास्ते भारत आए थे।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि आर्य (वैदिक काल के लोग) मध्य एशिया से आए, उन्होंने खेबर दरें के जरिए भारत में प्रवेश किया। भारत में ये सप्त सैन्धव प्रदेश में बसे।
- ऋग्वैदिक काल (Indian history)
राजनीतिक स्थिति
- यह काल कबीलाई तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। इस कबीलो का प्रधान 'राजन' होता था। इन राजनो की स्वेच्छाचारिता पर प्रतिबंध लगाने के लिए विदथ (सर्वाधिक प्राचीन) 'सभा' एवं 'समिति' जैसी संस्थाएँ थी।
- इस काल में राजनीतिक दृष्टि से 5 इकाई प्रचलित थी---कुल ,ग्राम विश , जन और राष्ट्र। इनमें कुल या परिवार सबसे छोटी इकाई थी और राष्ट्र सबसे बड़ी।
- ऋग्वेद में दाशराज युद्ध का वर्णन आया है जिसमें भारत जन के राजा सुदास द्वारा दस राजाओं के संग को हराने का उल्लेख है यह युद्ध रावी नदी तट पर लड़ा गया था।
सामाजिक स्थिति
- ऋग्वैदिक समाज चार वर्गों में विभक्त था--ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। यह वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी। ऋग्वेद के दसवें मंडल के 'पुरुषसूक्त' में इन चार वर्णों का उल्लेख मिलता है।
- परिवार पितृसत्तात्मक होता था, परंतु स्त्रियों की स्थिति समाज में सम्माननीय थी। उन्हें पढ़ने व यज्ञ में भाग लेने का पूर्ण अधिकार था।
- बाल-विवाह तथा पर्दा-प्रथा का प्रचलन नहीं था।
- वेशभूषा में सूती, ऊनी रंगीन कपड़ों का प्रचलन था।
धार्मिक स्थिति
- इसमें अतिरिक्त देवताओं में सर्वोच्च स्थान इंद्र का तथा उसके बाद अग्नि का था। वरुण, सोम , सवितु, पूषण, यम्, रूद्र, अश्वनी आदि प्रमुख देवता थे और उषा, अदिति, रात्रि, संध्या आदि प्रमुख देवियांँ थी।
- ऋग्वेद में उल्लेखित सभी नदियों में सरस्वती सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी।
आर्थिक स्थिति (Indian history)
- ऋग्वैदिक आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। संपत्ति की गणना रयि अर्थात् मवेशियों के रूप में होती थी। गाय सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। गाय के लिए युद्ध का विवरण मिलता है। कृषि के लिए ऊदर धान्य वपन्ति जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है। ऋग्वेद में यव(जौ) की चर्चा है।
व्यापार हेतु वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी। कुछ व्यवसायिको के नाम भी मिलते हैं; जैसे--तक्षण, बैकनाथ, कर्मा, स्वर्ण कर्मा, वाय आदि ।
- ऋग्वैदिक आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। संपत्ति की गणना रयि अर्थात् मवेशियों के रूप में होती थी। गाय सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। गाय के लिए युद्ध का विवरण मिलता है। कृषि के लिए ऊदर धान्य वपन्ति जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है। ऋग्वेद में यव(जौ) की चर्चा है।
2. उत्तर वैदिक काल (Indian history)
- उत्तर वैदिक काल का तात्पर्य उस काल से है जब यजुर्वेद, सामवेद, अर्थवेद, ब्राह्मणग्रंथ, अरण्यक तथा उपनिषद की रचना की गई। चित्रित धूसर मृतभाण्ड तथा लोहा इस काल की विशेषता है।
- इस युग में आर्य सभ्यता धीरे-धीरे पूर्व और दक्षिण की ओर फैलने लगी। स्थाई जीवन की शुरुआत। पशुपालन की जगह कृषि को अधिक महत्व।
राजनीतिक जीवन (Indian history)
- इस समय ऋग्वैदिककालीन अनेक छोटे-छोटे कबीले एक दूसरे में विलय होकर क्षेत्रगत जनपदों में बदलने लगे थे।
- सभा और समिति नामक सभाओं का अंत हो गया और राजा की शक्ति में वृद्धि होने लगी। अथर्ववेद में 'राज्याभिषेक' का उल्लेख है।
- राजा मंत्रियों की सहायता से समस्त राज्य में प्रशासन करता था। इन मंत्रियों को उत्तर वैदिक काल में रत्निन कहा जाता था।
सामाजिक जीवन
- परिवार पित्र प्रधान एवं संयुक्त परिवार था।
- समाज में स्त्रियों की दशा में पतन हुआ। जाति प्रथा कर्म के आधार पर न होकर जन्म के आधार पर होने लगी और उसमें कठोरता आ गई।
- मनुष्य का जीवन चार आश्रमों में विभाजित माना जाने लगा--ब्रह्माचार्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम। सर्वप्रथम जाबालोपनिषद मैं चार आश्रमों का वर्णन मिलता है। मनोरंजन के साधन में लोकनृत्य ,संगीत, जुवा एवं युद्ध मुख्य थे।
आर्थिक जीवन
- अर्थव्यवस्था न तो पुणंँत: ग्रामीण थी न हीं शहरी। सूत कातने एवं वस्त्र बुनने का व्यवसाय अत्यधिक विकसित था।
- शतपथ ब्राह्मण मैं कृषि की चारों क्रियाओं का उल्लेख हुआ है। कड़क संहिता मैं 24 बैलों द्वारा खींचे जाने वाले हल्लो का उल्लेख मिलता है।
- उद्योग का अधिक विशिष्टीकरण हुआ, जिसके कारण अनेक नए व्यवसाय प्रकाश में आए रथ निर्माण, रंग रेंज, धोबी, तीर धनुष निर्माण, कशीदाकारी आदि। निष्क तथा सतमान जैसी सिक्कों की चर्चा मिलती है।
धार्मिक जीवन
- उत्तर वैदिक काल में यज्ञ तत्कालीन संस्कृति का मूल आधार था। यज्ञ के साथ-साथ अनेक अनुष्ठान भी प्रचलन में थे।
- इस काल में प्रजापति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो गया था। विष्णु को संरक्षक के रूप में पूजा जाता था।
वैदिक साहित्य
- वेद
वेद का अर्थ ज्ञान से है। इनसे आर्यों के आगमन वह बसने का पता चलता है। वेद चार है--ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। वेदों के संकलन का श्रेय महर्षि कृष्णा द्वैपायन वेद व्यास को है।
ऋग्वेद
- ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 श्लोक (1017 सूक्त तथा 11 वलाखिल्य) तथा लगभग 10462 मंत्र हैं।
- इसमें पहला और दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया है, इसमें 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम माने गए हैं। नो वे मंडल को सोम मंडल कहा जाता है।
- ऋग्वेद में अग्नि, मित्र, इंद्र, वरुण आदि देवताओं की स्मृति में रची गई प्रार्थनाओं का संकलन है तथा इसका पाठ करने वाले ब्राह्मण को होत्र या होता कहा गया है।
- दसवें मंडल में 'पुरुषसूक्त' का जिक्र आता है, चार वर्णों का उल्लेख है।
- गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में है। यह मंत्र सूर्य की स्तुति में है।
- ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 श्लोक (1017 सूक्त तथा 11 वलाखिल्य) तथा लगभग 10462 मंत्र हैं।
- इसमें पहला और दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया है, इसमें 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम माने गए हैं। नो वे मंडल को सोम मंडल कहा जाता है।
- ऋग्वेद में अग्नि, मित्र, इंद्र, वरुण आदि देवताओं की स्मृति में रची गई प्रार्थनाओं का संकलन है तथा इसका पाठ करने वाले ब्राह्मण को होत्र या होता कहा गया है।
- दसवें मंडल में 'पुरुषसूक्त' का जिक्र आता है, चार वर्णों का उल्लेख है।
- गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में है। यह मंत्र सूर्य की स्तुति में है।
यजुर्वेद
- यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान ग्रंथ है। इसमें 40 मंडल तथा 2000 ऋचाएँ है। इसका पाठ करने वाले ब्राह्मण को 'अध्वयुँ' कहा गया है।
- यजुर्वेद दो भागों में विभक्त है---(1) कृष्ण यजुर्वेद (गघ)। (2) शुक्ल यजुर्वेद (पघ)। यजुर्वेद एकमात्र ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनों में रचा गया है।
- यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान ग्रंथ है। इसमें 40 मंडल तथा 2000 ऋचाएँ है। इसका पाठ करने वाले ब्राह्मण को 'अध्वयुँ' कहा गया है।
- यजुर्वेद दो भागों में विभक्त है---(1) कृष्ण यजुर्वेद (गघ)। (2) शुक्ल यजुर्वेद (पघ)। यजुर्वेद एकमात्र ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनों में रचा गया है।
सामवेद
- साम का अर्थ "गान" से है। इसकी ऋचाओं का गान करने वाले ब्राह्मण को 'उद्गगात' कहते थे।
- सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ है।
- वेदों में सामवेद को "भारतीय संगीत का जनक" माना जाता है।
- साम का अर्थ "गान" से है। इसकी ऋचाओं का गान करने वाले ब्राह्मण को 'उद्गगात' कहते थे।
- सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ है।
- वेदों में सामवेद को "भारतीय संगीत का जनक" माना जाता है।
अथर्ववेद
- अथर्ववेद की रचना अथर्व ऋषि ने की थी।
- 'अथर्व' शब्द का तात्पर्य है--पवित्र जादू। अथर्ववेद में रोग-निवारण, राजभक्ति, विवाह, प्रणय गीत, अंधविश्वास का वर्णन है।
- अथर्ववेद की रचना अथर्व ऋषि ने की थी।
- 'अथर्व' शब्द का तात्पर्य है--पवित्र जादू। अथर्ववेद में रोग-निवारण, राजभक्ति, विवाह, प्रणय गीत, अंधविश्वास का वर्णन है।
वेदों के उपवेद और उनके रचनाकार
- ऋग्वेद-आर्युवेद (चिकित्सा शास्त्र से संबंधित)-धन्वन्तरि
- यजुर्वेद-धनुर्वेद (युद्ध कला से संबंधित)-विश्वामित्र
- सामवेद-गान्धर्ववेद (कला एवं संगीत से संबंधित)-भरतमुनि
- अथर्ववेद-शिल्पवेद (भवन निर्माण कला से संबंधित)-विश्वकर्मा
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